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Wednesday, 20 January 2016

।।पीड़ित लग्नेश रोगी बनाता है।।

लग्नाधिपो जन्मनि पापदृष्टो
हीनो न केनापि ग्रहेणयुक्तः।
धातु स्वकीये हि ददाति रोगं
रविर्यथास्थौ चन्द्रश्चरक्ते।।
लग्नेश पाप दृष्ट या अन्य प्रकार निर्बल होकर शुभ ग्रहों की दृष्टि युति से वंचित हो, तो ऐसा जातक लग्नेश से संबंधित धातु रोग से कष्ट पाता है ।पीड़ित सूर्य अस्थि रोग तो पाप दृष्ट हीनबली चंद्रमा रक्त संबंधी रोग देगा इसी प्रकार अन्य ग्रह भी लग्नेश होकर पापी ग्रहों से पीड़ित होने पर निम्न रोग देते हैं।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• सूर्य- अस्थिरोग।
चंद्र- रक्तविकार
मंगल- मांसपेशी या अस्थि मज्जा रोग।
बुध-त्वचा रोग, स्मृति भ्रंश।
गुरु-कफ या यकृत(जिगर) के रोग।
शुक्रवार विकार या प्रजनन अंग के दोष।
शनि तथा राहु - केतु- स्नायुविक दुर्बलता , अपंगता।
।।अस्थिभंग का उदाहरण।।
प्रस्तुत कुंडली में लग्न में व्ययेश चंद्रमा है तो लग्नेश सूर्य षष्ठ ( रोग ) भाव में राहु से दृष्ट है।सूर्य अस्थि का कारक होकर षष्ठ भाव में होने से जातक ने हड्डी टूटने से कष्ट पाया ।लग्नेश dispositor अर्थात शनि पंचम भाव में होने से रोग संबंधी चिंता की पुष्टि करता है।राहु dispositor शुक्र का अष्टम भाव में उच्चस्थ होना तथा अष्टमेश का षष्ठेश से दृष्टि संबंध होना भी रोग और विपत्ति की पुष्टि करता है।

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