।।चूड़ाकरण (मुंडन )संस्कार।।
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प्रथम बार बालक के बाल कटवाने का नाम चूड़ाकर्म ,मुंडन या क्षौरकर्म है।चूड़ा (जूड़ा)अर्थात सिर से संबंधित कर्म या कार्य ।आम भाषा में इसे मुंडन कहा जाता है
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प्रथम बार बालक के बाल कटवाने का नाम चूड़ाकर्म ,मुंडन या क्षौरकर्म है।चूड़ा (जूड़ा)अर्थात सिर से संबंधित कर्म या कार्य ।आम भाषा में इसे मुंडन कहा जाता है
मुंडन का सीधा संबंध बालक के मानसिक विकास से है।यदि अल्पविकसित या उच्छृंखल मति बालक के सिर पर बचपन में बार-बार उस्तरा फिरवा दिया जाये तो उसकी बुद्धि तीव्र होती है ऐसी मान्यता है।ऋषियों ने इसे प्रधान संस्कारों मे से एक माना है तथा संस्कार लोप के अधुनातन युग में भी यह संस्कार प्रचलित है ।इसका प्रयोजन आयुष्य व बुद्धि की वृद्धि से ही बताया गया है।
मुंडन संस्कार का काल गर्भाधान या जन्म से विषम वर्षों मे करना बताया गया है। गर्भाधान से समय गिनने के लिए जन्म से गत वर्षों मे 9 माह और जोड़नेसे गर्भाधान से आयु वर्ष आ जाते हैं ।फिर भी जन्म से विषम वर्षों यथा 3,5,7 आदि वर्षों में मुंडन करना चाहिए।कन्या के लिए इसी प्रकार सम वर्ष लेने चाहिए।
लेकिन मनु के मत से लड़के के लिए एक वर्ष के भीतर भी मुंडन कराया जा सकता है
लेकिन मनु के मत से लड़के के लिए एक वर्ष के भीतर भी मुंडन कराया जा सकता है
उत्तरायण में माघादि पांच मास में चैत्र रहित मासों में क्षीण चंद्रमा को छोड़कर मुंडन कराना चाहिए अतः माघ,फाल्गुन,बैशाख,ज्येष्ठ ,आषाढ़ में कृष्ण पक्ष की दशमी से पूर्व तथा शुक्ल द्वितीया के बाद मुंडन कराना चाहिए।फिर भी शुक्लपक्ष को प्रधान माना जाता है।
इनमें भी रिक्ता (4-9-14 ) तिथियों व षष्ठी, अष्टमी ,द्वादशी तिथियों को छोड़कर मुंडन कराना चाहिए।अतः 2,3,5,7,10,11,13 तिथियां ग्राह्य हैं।
वार सदैव शुभ ग्रह का ही होना चाहिए ।नक्षत्रों में जन्म नक्षत् को सदैव नियमतः छोड़कर ज्येष्ठा, चित्रा , मृगशिरा, रेवती पुनर्वसु,स्वाती ,श्रवण,धनिष्ठा शतभिषा अश्वनी ,पुष्य एवं हस्त नक्षत्रों को लेना चाहिए।3,5,7तारायें यहां भी छोड़नी चाहिए।
लग्नशुद्धि व अष्टम भाव शुद्धि देखकर ,जन्मलग्न व राशि से अष्टम राशि वाले लग्न को छोड़कर लग्न लेना चाहिए।
मुंडन सदैव दोपहर तक अभिजित मुहूर्त तक ही श्रेष्ठ है।
लग्नशुद्धि व अष्टम भाव शुद्धि देखकर ,जन्मलग्न व राशि से अष्टम राशि वाले लग्न को छोड़कर लग्न लेना चाहिए।
मुंडन सदैव दोपहर तक अभिजित मुहूर्त तक ही श्रेष्ठ है।
बहुत से स्थानों पर लोग मुहूर्त का साधारण विचार करके किसी तीर्थ विशेष ,देव स्थान विशेष पर भी मुंडन व कर्णवेध करवाते हैं यह लोकाचार है।इसमें लकीर का फकीर नही होना चाहिए।